ऋषि
राज कहने लगे, सुन राजन मन लाये
दुर्गा
पाठ का कहता हूं पांचवा मैं अध्याय॥
एक
समय शुम्भ निशुम्भ दो हुए दैत्य बलवान
जिनके
भय से कंपता था यह सारा जहान॥
इन्द्र
आदि को जीत कर लिया सिंहासन छीन
खोकर
ताज और तख्त को हुए देवता दीन॥
देव
लोक को छोड़ कर भागे जान बचाए
जंगल
जंगल फिर रहे संकट से घबराए॥
तभी
याद आया उन्हें देवी का वरदान
याद
करोगे जब मुझे करूंगी मैं कल्याण॥
तभी
देवताओं ने स्तुति करी
खड़े
हो गए हाथ जोड़े सभी॥
लगे
कहने ऐ मैया उपकार कर
तू आ
जल्दी दैत्यों का संहार कर॥
प्रकृति
महा देवी भद्रा है तू
तू ही
गौरी धात्री व रुद्रा है तू॥
तू है
चन्द्र रूप तू सुखदायनी
तू
लक्ष्मी सिद्धि है सिंहवाहिनी॥
हैं
बेअंत रूप और कई नाम हैं
तेरे
नाम जपते सुबह शाम हैं॥
तू भक्तों
की कीर्ति तू सत्कार है
तू
विष्णु की माया तू संसार है॥
तू ही
अपने दासों की रखवार है
तुझे
माँ करोड़ों नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है।
तू हर
प्राणी में चेतन आधार है
तू ही
बुद्धि मन तू ही अहंकार है॥
तू ही
निंद्रा बन देती दीदार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
तू ही
छाया बनके है छाई हुई
क्षुधा
रूप सब मे समाई हुई॥
तेरी
शक्ति का सब में विस्तार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है।
नमस्कार
है नमस्कार है॥
है
तृष्णा तू ही क्षमा रूप है
यह
ज्योति तुम्हारा ही स्वरूप है॥
तेरी
लज्जा से जग शरमसार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
तू ही
शांति बनके धीरज धरावे
तू ही
श्रद्धा बनके यह भक्ति बढ़ावे॥
तू ही
कान्ति तू ही चमत्कार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
तू ही
लक्ष्मी बन के भंडार भरती
तू ही
वृत्ति बन के कल्याण करती॥
तेरा
स्मृति रूप अवतार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
तू ही
तुष्ठी बनी तन में विख्यात है
तू हर
प्राणी की तात और मात है॥
दया
बन समाई तू दातार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
तू ही
भ्रान्ति भ्रम उपजा रही
अधिष्ठात्री
तू ही कहला रही॥
तू
चेतन निराकार साकार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
तू ही
शक्ति-ज्वाला प्रचंड है
तुझे
पूजता सारा ब्रह्मंड है॥
तू ही
रिधि -सिद्धि का भंडार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
मुझे
ऐसा भक्ति का वरदान दो
'भक्त' का भी उद्दार कल्याण हो॥
तू
दुखिया अनाथों की गमखार है
तुझे माँ
करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
नमस्कार
स्त्रोत को जो पढ़े
भवानी
सभी कष्ट उसके हरे॥
हर
जगह वह मददगार है
तुझे
माँ करोड़ो नमस्कार है॥
नमस्कार
है नमस्कार है॥
राजा
से बोले ऋषि सुन देवों की पुकार
जगदम्बे
आई वह रूप पार्वती का धार॥
गंगाजल
में जब किया भगवती ने स्नान
देवों
से कहने लगी किसका करते हो ध्यान॥
इतना
कहते ही शिवा हुई प्रकट तत्काल
पार्वती
के अंश से धरा रूप विशाल॥
शिवा
ने कहा मुझ को हैं ध्या रहे
यह सब
स्तुति मेरी ही गा रहे॥
हैं
शुम्भ और निशुम्भ के डराए हुए
शरण
में हमारी है आये हुए॥
शिवा
अंश से बन गई अम्बिका
जो
बाकी रही वह बनी कालिका॥
धरे
शैल पुत्री ने यह दोनों रूप
बनी
एक सुंदर और बनी एक करूप॥
महाकाली
जग में विचरने लगी
और
अम्बे हिमालय पे रहने लगी॥
तभी
चंड और मुंड आये वहां
विचरती
पहाड़ों में अम्बे जहाँ॥
रूप
अति सुंदर न देखा गया
निरख
रूप मोह दिल में पैदा हुआ॥
कहा
जा के फिर शुम्भ महाराज जी
कि
देखि है एक सुंदर आज ही॥
चढ़ी
सिंह पर सैर करती हुई
वह हर
मन में ममता को भरती हुई॥
चलो
आँखों से देख लो भाल लो
रत्न
है त्रिलोकी का सम्भाल लो॥
सभी
सुख चाहे घर में मौजूद हैं
मगर
सुन्दरी बिन वो बेसुध हैं॥
वह
बलवान राजा है किस काम का
न
पाया जो साथी यह आराम का॥
करो
उससे शादी तो जानेंगे हम
महलों
में लाओ तो मानेंगे हम॥
यह
सुन कर वचन शुम्भ का दिल बढ़ा
महा
असुर सुग्रीव से यूं कहा॥
जाओ
देवी से जाके जल्दी कहो
कि
पत्नी बनो महलों में आ रहो॥
तभी
दूत प्रणाम करके चला
हिमालय
पे जा भगवती से कहा॥
मुझे
भेजा है असुर महाराज ने
अति
योद्धा दुनिया के सरताज ने॥
वह
कहता है दुनिया का मालिक हूं मैं
इस
त्रिलोकी का प्रतिपालक हूं मैं॥
रत्न हैं
सभी मेरे अधिकार में
मैं
ही शक्तिशाली हूं संसार में।
सभी
देवता सर झुकाएं मुझे
सभी
विपदा अपनी सुनाएं मुझे।
अति
सुंदर तुम स्त्री रत्न हो
हो
क्यों नष्ट करती सुदरताई को॥
बनो
मेरी रानी तो सुख पाओगी
न भटकोगी
वन में न दुःख पाओगी॥
जवानी
में जीना वो किस काम का
मिला
न विषय सुख जो आराम का॥
जो
पत्नी बनोगी तो अपनाऊंगा
मैं
जान अपनी कुर्बान कर जाऊंगा॥
दूत
की बातों पर दिया देवी ने ना ध्यान
कहा डांट
कर सुन अरे मुर्ख खोल के कान॥
सुना
मैंने वह दैत्य बलवान है
वह
दुनिया में शहजोर धनवान है॥
सभी
देवता हैं उस से हारे हुए
छुपे
फिरते हैं डर के मारे हुए॥
यह मन
की रत्नों का मालिक है वो
सुना
यह भी सृष्टि का पालक है वो॥
मगर
मैंने भी एक प्रण ठाना है
तभी न
असुर का हुक्म माना है॥
जिसे
जग में बलवान पाउंगी मैं
उसे
कान्त अपना बनाउंगी मैं॥
जो है
शुम्भ ताकत के अभिमान में
तो
भेजो उसे आये मैदान में॥
कहा
दूत ने सुन्दरी न कर यूं अभिमान
शुम्भ
निशुम्भ हैं दोनों ही , योद्धा अति बलवान॥
उन से
लड़कर आज तक जीत सका ना कोय
तू
झूठे अभिमान में काहे जीवन खोये॥
अम्बा
बोली दूत से बंद करो उपदेश
जाओ
शुम्भ निशुम्भ को दो मेरा सन्देश॥
कहे
दैत्य जो, वह फिर कहना आये
युद्ध
की प्रतिज्ञा मेरी, देना सब समझाए॥
॥जय
माँ जगदम्बे॥
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