काली
ने जब कर दिया चंड मुंड का नाश
सुनकर
सेना का मरण हुआ निशुम्भ उदास॥
तभी
क्रोध करके बढ़ा आप आगे
इकट्ठे
किये दैत्य जो रण से भागे॥
कुलों
के कुल असुरों के लिए बुलाई
दिया
हुकम अपना उन्हें तब सुनाई॥
चलो
युद्ध भूमि में सेना सजा के
फिरो
देवियों का निशां तुम मिटा के॥
अधायुध
और शुम्भ थे दैत्य योद्धा
भरा
उनके दिल में भयंकर क्रोध॥
असुर
रक्तबीज को ले साथ धाये
चले काल
के मुहं में सेना सजाये॥
मुनि
बोले राजा वह शुम्भ अभिमानी
चला
आप भी हाथ में धनुष तानी॥
जो
देवी ने देखी सेना आई
धनुष
की तभी डोरी माँ ने चढाई॥
वह
टंकार सुन गूंजा आकाश सारा
महाकाली
ने साथ किलकार मारा॥
किया
सिंह ने भी शब्द फिर भयंकर
आये
देवता ब्रह्मा विष्णु व शंकर॥
हर एक
अंश से रूप देवी ने धारा
वह
निज नाम से नाम उनका पुकारा॥
बनी
ब्रह्मा के अंश देवी ब्रह्माणी
चढ़ी
हंस माला कमंडल निशानी॥
चढ़ी
बैल त्रिशूल हाथो में लाई
शिवा
शक्ति शंकर की जग में कहलाई॥
वह
अम्बा बनी स्वामी कार्तिक की अंशी
चढ़ी
गरुड़ आई जो थी विष्णु वंशी॥
वराह
अंश से रूप वाराही आई
वह
नरसिंह से नर्सिंघी कहलाई॥
ऐरावत
चढ़ी इन्द्र की शक्ति आई
महादेव
जी तब यह आज्ञा सुनाई॥
सभी
मिल के दैत्यों का संहार कर दो
सभी
अपने अंशो का विस्तार कर दो॥
दोहा :
इतना
कहते ही हुआ भारी शब्द अपार
प्रगटी
देवी चंडिका रूप भयानक धार॥
घोर
शब्द से गरज कर कहा शंकर से जाओ
बनो
दूत, सन्देश यह दैत्यों को पहुंचाओ॥
जीवत
रहना चाहते हो तो जा बसे पाताल
इन्द्र
को त्रिलोक का दें वह राज्य सम्भाल॥
नहीं
तो आयें युद्ध में तज जीवन की आस
इनके
रक्त से बुझेगी मह्काली की प्यास॥
शिव
को दूत बनाने से शिवदूती हुआ नाम
इसी
चंडी महामाया ने किया घोर संग्राम॥
दैत्यों
ने शिव शम्भू की मानी एक ना बात
चले
युद्ध करने सभी लेकर सेना साथ॥
आसुरी
सेना ने तभी ली सब शक्तियां घेर
चले
तीर तलवार तब हुई युद्ध की छेड़॥
दैत्यों
पर सब देवियां करने लगी प्रहार
क्षण
भर में होने लगा असुर सेना संहार॥
दसों
दिशओं में मचा भयानक हाहाकार
नव
दुर्गा का छा रहा था वह तेज अपार॥
सुन
काली की गर्जना हए व्याकुल वीर
चंडी
ने त्रिशूल से दिए कलेजे चीर॥
शिवदूती
ने कर लिए भक्षण कई शरीर
अम्बा
की तलवार ने कीने दैत्य अधीर॥
यह
संग्राम देख गया दैत्य खीज
तभी
युद्ध करने बढ़ा रक्तबीज॥
गदा
जाते ही मारी बलशाली ने
चलाये
कई बाण तब काली ने॥
लगे तीर
सीने से वापस फिरे
रक्तबीज
के रक्त कतरे गिरे॥
रुधिर
दैत्य का जब जमीं पर बहा
हुए
प्रगट फिर दैत्य भी लाखहा॥
फिर
उनके रक्त कतरे जितने गिरे
उन्हीं
से कई दैत्य पैदा हुए॥
यह बढ़ती
हुई सेना देखी जभी
तो
घबरा गए देवता भी सभी॥
विकल
हो गई जब सभी शक्तियां
तो
चंडी ने महा कालिका से कहा॥
करो
अपनी जीभा का विस्तार तुम
फैलाओ
यह मुहं अपना एक बार तुम॥
मेरे
शस्त्रों से लहू जो गिरे
वह
धरती के बदले जुबां पर पड़े॥
लहू
दैत्यों का सब पिए जाओ तुम
ये लाशें
भी भक्षण किये जाओ तुम॥
न
इसका जो गिरने लहू पायेगा
तो
मारा असुर निश्चय ही जायेगा॥
दोहा :
इतना
सुन महाकाली ने किया भयानक वेश
गर्ज
से घबराकर हुआ व्याकुल दैत्य नरेश॥
रक्तबीज
ने तब किया चंडी पर प्रहार
रोक
लिया त्रिशूल से जगदम्बे ने वार॥
तभी
क्रोध से चंडिका आगे बढ़ कर आई
अपने
खड्ग से दैत्य की गर्दन काट गिराई॥
शीश
कटा तो लहू गिरा चामुंडा गई पी
रक्तबीज
के रक्त से सके न निश्चर जी॥
महाकाली
मुहं खोल के धाई
दैत्य
के रुधिर से प्यास बुझाई॥
धरती
पे लहू गिरने ना पाया
खप्पर
भर पी गई महामाया॥
भयो नाश
तब रक्तबीज का
नाची
तब प्रसन्न हो कालिका॥
असुर
सेना सब दी संघारी
युद्ध
में भयो कुलाहल भारी॥
देवता
गण तब अति हर्षाये
धरयो
शीश शक्ति पद आये॥
कर
जोड़े सब विनय सुनाये
महामाया
की स्तुति गाये॥
चंडिका
तब दीनो वारदान
सब
देवन का कियो कल्याण॥
ख़ुशी
से नृत्य किया शक्ति ने
वर यह
दिया शक्ति ने॥
जो यह
पाठ पढ़े या सुनाये
मनवांछित
फल मुझ से पाए॥
उसके
शत्रु नाश करूंगी
पूरी
उसकी आस करुँगी॥
माँ
सम पुत्र को मैं पालूंगी
सभी
भंडारे भर डालूंगी॥
दोहा :
तीन
काल है सत्य यह शक्ति का वरदान
नव
दुर्गा के पाठ से है सब का कल्याण॥
भक्ति
शक्ति मुक्ति का है यही भंडार
इसी
के आसरे हो भवसागर पार॥
नवरात्रों
मै जो पढ़े देवी के मंदिर जाए
कहे
मारकंडे ऋषि मनवांछित फल पाए॥
वरदाती
वरदायनी सब की आस पूजाए
प्रेम
सहित महामाया की जो भी स्तुति गाए॥
सिंह
सवारी मईया जी मन मंदिर जब आये
किसी
भी संकट मे पड़ा भक्त नहीं घबराए॥
किसी
जगह भी शुद्ध हो पढ़े या पाठ सुनाये
भवानी
की कृपा उस पर ही हो जाये॥
नव
दुर्गा के पाठ का आठवां यह अध्याय
निशदिन
पढ़े जो प्रेम से शत्रु नाश हो जाये॥
॥बोलिए
जय माता दी॥
॥जय
माँ मेरी राज रानी की॥
adhbhut doha h
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