सोमवार, 29 अप्रैल 2013

श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

आभा पुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।
काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपु मुरख मोही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

रविवार, 28 अप्रैल 2013

मेहनत का फल


        राजकुमारी रोजी की खूबसूरती की हर जगह चर्चा थी  सुनहरी आंखें, तीखे नयन-नक्श, दूध-सी गोरी काया, कमर तक लहराते बाल सभी सुंदरता में चार चांद लगाते थे एक बार की बात है  राजकुमारी रोजी को अचानक खड़े-खड़े चक्कर आ गया और वह बेहोश होकर गिर पड़ी

        राज वैद्य ने हर प्रकार से रोजी का इलाज किया, पर राजकुमारी रोजी को होश नहीं आ रहा था
 राजा अपनी इकलौती बेटी को बहुत चाहते थे

        उस देश के रजउ नामक ग्राम में विलियम और जॉन नाम के दो भाई रहा करते थे
विलियम बहुत मेहनती और चुस्त था और जॉन अव्वल दर्जे का आलसी था सारा दिन खाली पड़ा बांसुरी बजाया करता था  विलियम पिता के साथ सुबह खेत पर जाता, हल जोतता व अन्य कामों में हाथ बंटाता

        एक दिन विलियम ने जंगल में तोतों को आदमी की भाषा में बात करते सुना
एक तोता बोला - "यहां के राजा की बेटी अपना होश खो बैठी है, क्या कोई इलाज है?" "क्यों नहीं, वह जो उत्तर दिशा में पहाड़ी पर सुनहरे फलों वाला पेड़ है वहां से यदि कोई फल तोड़कर उसका रस राजकुमारी को पिलाए तो राजकुमारी ठीक हो सकती है", दूसरे तोते ने कहा “पर ढालू पहाड़ी से ऊपर जाना तो बहुत कठिन काम है, उससे फिसलकर तो कोई बच नहीं सकता", पहले तोते ने कहा

        विलियम ने घर आकर सारी बात बताई तो जॉन जिद करने लगा कि वह फल मैं लाऊंगा और राजा से हीरे-जवाहरात लेकर आराम की बंसी बजाऊंगा
 फिर जॉन अपने घर से चल दिया  मां ने रास्ते के लिए जॉन को खाना व पानी दे दिया

        जॉन अपनी बांसुरी बजाता पहाड़ी की ओर चल दिया
 पहाड़ी की तलहटी में उसे एक बुढ़िया मिली, वह बोली - "मैं बहुत बुखी हूं  कुछ खाने को दे दो
जॉन बोला - "हट बुढ़िया, मैं जरूरी काम से जा रहा हूं
 खाना तुझे दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा?" और जॉन आगे चल दिया पर पहाड़ी के ढलान पर पहुंचते ही जॉन का पांव फिसल गया और वह गिरकर मर गया

        कई दिन इंतजार करने के पश्चात् विलियम घर से चला
 उसके लिए भी मां ने खाना व पानी दिया  उसे भी वही बुढ़िया मिली  बुढ़िया के भोजन मांगने पर विलियम ने आधा खाना बुढ़िया को दे दिया और स्वयं आगे बढ़ गया विलियम जब ढलान पर पहुंचा तो उसका पांव भी थोड़ा-थोड़ा फिसल रहा था, वह घास पकड़-पकड़ कर चढ़ रहा था  तभी उसे वहां दो तोते दिखाई दिए और उनमें एक-एक तड़पकर उसके आगे गिर गया विलियम को चढ़ते-चढ़ते प्यास भी लग रही थी और उसके पास थोड़ा ही पानी बचा था, फिर भी उसने तोते की चोंच में पानी डाल दिया चोंच पर पानी पड़ते ही तोता उड़ गया और न जाने तभी विलियम का पैर फिसलना रुक गया  विलियम तेजी से ऊपर चढ़ा और सुनहरे पेड़ तक पहुंच गया

        उसने पेड़ से एक फल तोड़ लिया
 फल को तोड़ते ही उसमें जादुई शक्ति आ गई  उसने आंखें मूंद लीं और जब आंखें खोली तो स्वयं को पहाड़ी से नीचे पाया और उसके सामने वही बुढ़िया खड़ी मुस्करा रही थी

        वह फल लेकर राजा के महल में पहुंचा और राजा की आज्ञा लेकर उसने फल का रस निकाल कर राजकुमारी के मुंह में डाल दिया
रस मुंह में पड़ते ही राजकुमारी ने आंखें खोल दीं  राजकुमारी बोली - "हे राजकुमार, तुम कौन हो?"
विलियम बोला - "मैं कोई राजकुमार नहीं, एक गरीब किसान हूं
"
इतने में राजा व उसके सिपाही आ गए  
राजा बोले - "आज से तुम राजकुमार ही हो नवयुवक  तुमने रोजी को नई जिन्दगी दी है  बताओ, तुम्हें क्या इनाम दिया जाए?"
विलियम बोला - "मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, मेरे पास बहुत थोड़ी जमीन है
 यदि आप मुझे पांच एकड़ जमीन दिलवा दें तो मैं ज्यादा खेती करके आराम से रह सकूंगा "

       राजा बोला - "सचमुच तुम मेहनती और ईमानदार हो
 तभी तुमने इतना छोटा इनाम मांगा है हम तुम्हारा विवाह अपनी बेटी रोजी से करके तुम्हारा राजतिलक करना चाहते हैं "

       विलियम बोला - "पहले मैं अपने माता-पिता की आज्ञा लेना अपना फर्ज समझता हूं
"
राजा विलियम की मातृ-पितृ भक्ति देखकर गद्गद हो उठा और बोला - "उनसे हम स्वयं ही विवाह की आज्ञा प्राप्त करेंगे
 सचमुच तुम्हारे माता-पिता धन्य हैं जो उन्होंने तुम जैसा मेहनती व होनहार पुत्र पाया है "

        फिर राजा ने विलियम के पिता की आज्ञा से विलियम व रोजी का विवाह कर दिया और उसके पिता को रहने के लिए बड़ा मकान, खेती के लिए जमीन व काफी धन दिया

विलियम राजकुमारी के साथ महल में तथा उसके माता-पिता अपने बड़े वैभवशाली मकान में सुखपूर्वक रहने लगे

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

गायत्री मन्त्र का वैज्ञानिक आधार


        गायत्री मन्त्र का अर्थ है उस परम सत्ता की महानता की स्तुति जिसने इस ब्रह्माण्ड को रचा है। यह मन्त्र उस ईश्वरीय सत्ता की स्तुति है जो इस संसार में ज्ञान और और जीवन का स्त्रोत है, जो अँधेरे से प्रकाश का पथ दिखाती है।

        गायत्री मंत्र लोकप्रिय यूनिवर्सल मंत्र के रूप में जाना जाता है। ये मंत्र किसी भी धर्म या एक देश के लिए नहीं है, यह पूरे ब्रह्मांड के अंतर्गत आता है। यह अज्ञान को हटा कर ज्ञान प्राप्ति की स्तुति है। मन्त्र विज्ञान के ज्ञाता अच्छी तरह से जानते हैं कि शब्द, मुख के विभिन्न अंगों जैसे जिह्वा, गला, दांत, होंठ और जिह्वा के मूलाधार की सहायता से उच्चारित होते हैं। शब्द उच्चारण के समय मुख की सूक्ष्म ग्रंथियों और तंत्रिकाओं में खिंचाव उत्पन्न होता है जो शरीर के विभिन्न अंगों से जुडी हुई हैं। योगी इस बात को भली प्रकार से जानते हैं कि मानव शरीर में संकड़ों दृश्य–अदृश्य ग्रंथियां होती है जिनमे अलग-अलग प्रकार की अपरिमित उर्जा छिपी है । अतः मुख से उच्चारित हर अच्छे और बुरा शब्द का प्रभाव अपने ही शरीर पर पड़ता है।

         पवित्र वैदिक मंत्रो को मनुष्य के आत्मोत्थान के लिए इन्ही नाड़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव के अनुसार रचा गया है। आर्य समाज का प्रचलित गायत्री मन्त्र है -
ॐ भूर्भुव: स्व:  तत्सवितुर्वरेण्यम्।
भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो न: प्रचोदयात्

         शरीर में षट्चक्र हैं जो सात उर्जा बिंदु हैं - मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहद चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रार चक्र ये सभी सुषुम्ना नाड़ी से जुड़े हुए हैं। गायत्री मन्त्र में २४ अक्षर हैं जो शरीर की २४ अलग अलग ग्रंथियों को प्रभावित करते हैं और व्यक्ति का दिव्य प्रकाश से एकाकार होता है । गायत्री मन्त्र के उच्चारण से मानव शरीर के २४ बिन्दुओं पर एक सितार का सा कम्पन होता है जिनसे उत्पन्न ध्वनी तरंगे ब्रह्माण्ड में जाकर पुनः हमारे शरीर में लौटती है जिसका सुप्रभाव और अनुभूति दिव्य व अलौकिक है। 

         ॐ की शब्द ध्वनी को ब्रह्म माना गया है । ॐ के उच्च्यारण की ध्वनी तरंगे संसार को, एवं ३ अन्य तरंगे सत, रज और तमोगुण क्रमशः ह्रीं श्रीं और क्लीं पर अपना प्रभाव डालती है इसके बाद इन तरंगों की कई गूढ़ शाखायें और उपशाखाएँ है जिन्हें बीज-मन्त्र कहते है । गायत्री मन्त्र के २४ अक्षरों का संयोजन और रचना सकारात्मक उर्जा और परम प्रभु को मानव शरीर से जोड़ने और आत्मा की शुद्धि और बल के लिए रचा गया है। गायत्री मन्त्र से निकली तरंगे ब्रह्माण्ड में जाकर बहुत से दिव्य और शक्तिशाली अणुओं और तत्वों को आकर्षित करके जोड़ देती हैं और फिर पुनः अपने उदगम पे लौट आती है जिससे मानव शरीर दिव्यता और परलौकिक सुख से भर जाता है। मन्त्र इस प्रकार ब्रह्माण्ड और मानव के मन को शुद्ध करते हैं। दिव्य गायत्री मन्त्र की वैदिक स्वर रचना के प्रभाव से जीवन में स्थायी सुख मिलता है और संसार में असुरी शक्तियों का विनाश होने लगता है। गायत्री मन्त्र जाप से ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती है। गायत्री मन्त्र से जब आध्यात्मिक और आतंरिक शक्तियों का संवर्धन होता है तो जीवन की समस्याए सुलझने लगती है वह सरल होने लगता है। हमारे शरीर में सात चक्र और ७२००० नाड़ियाँ हैं, हर एक नाड़ी मुख से जुड़ी हुई है और मुख से निकला हुआ हर शब्द इन नाड़ियों पर प्रभाव डालता है। अतः आइये हम सब मिलकर वैदिक मंत्रो का उच्चारण करें, उन्हें समझें और वेद विज्ञान को जानें, भारत वर्ष का नव-उत्कर्ष सुनिश्चित करें।