सोमवार, 22 अप्रैल 2013

चरित्र

      मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा मूल्यवान उसका "चरित्र" है। चाहे वह स्त्री हो या पुरुष दोनों के  लिए चरित्र की रक्षा करना प्रथम कर्तव्य है। परन्तु आज का दुर्भाग्य है कि आज वही व्यक्ति ज्यादा धनी है जो अपने चरित्र को एवं ईमान को बेचकर खा रहा है। जो लूटकर , चोरी कर अथवा कैसे भी अनैतिक रूप से धन कमा रहा है।
      जो अपने आंतरिक स्थायी व बहुमूल्य "चरित्र" रूपी सम्पदा को बेचकर, बाहरी अस्थाई और नाशवान धन एकत्रित कर संसार में कथित "धनाढ्य" कहलाता है। जो चरित्र से गिर गया उसका संपूर्ण विकास बाधित हो जाता है। उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो नकारात्मक अर्थ में खुल जाती है, जिससे वह अपने खिलाफ ही फैसले लेता है और आजीवन दुःख पाता रहता है। उसके सकारात्मक दिशा में सोचने की, मनन करने की एवं कार्य करने की क्षमता का ह्रास हो जाता है।

      इसलिए तुम अपने चरित्र की, ईमान की रक्षा करो। यह तुम्हारी रक्षा करेगा। यदि चरित्र व ईमान के पालन की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गये तो भीतर और बाहर दोनों ओर से समृद्धि ही है, विकास  है।

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