रविवार, 21 अप्रैल 2013

सबसे गरीब....!

       एक सिद्ध महात्मा एक बार भ्रमण कर रहे थे। तभी मार्ग में चांदी का एक सिक्का दिखाई दिया। उसे उठाकर वे सोचने लगे कि मुझे तो भिक्षा में भोजन मिल ही जाता है, इसलिए यह सिक्का मैं सबसे गरीब आदमी को दान कर दूंगा। समय गुजरता गया। वे गरीब आदमी की तलाश में घूमते रहे, पर कोई सुपात्र नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने अपने क्षेत्र से बाहर जाकर अन्य क्षेत्र में सुपात्र व्यक्ति की तलाश शुरू कर दी।

       एक दिन घूमते-घूमते वे पड़ोसी राज्य की राजधानी में पहुंचे। उन्होंने देखा कि राजा अपनी विशाल सेना के साथ अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित होकर युद्ध के लिए जा रहा है। राजा महात्मा को पहचानता था। राजा ने हाथी से उतरकर उन्हें प्रणाम किया। तब महात्मा बोले, राजन यह सिक्का तुम रखो। मैं इसे सबसे गरीब आदमी को देना चाहता था। राजा बोला, महात्मन्‌ मेरे खजाने में तो अपार धन है, फिर मैं गरीब कैसे हुआ ? महात्मा बोले, इतना होने के बाद भी तुम संपन्नता के लिए युद्ध करने जा रहे हो, तो तुमसे ज्यादा गरीब और कौन होगा? इतना सुनते ही राजा की नजरें शर्म से झुक गईं और उसने सेना को लौटने का आदेश दिया।

       संग्रहवृत्ति लोभ को जन्म देती है और लोभ में व्यक्ति उचित-अनुचित को भूलकर गलत कार्यों में प्रवृत्त होकर अपना विनाश कर बैठता है।

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