दुर्गा पाठ का दूसरा शुरू करूं अध्याय,
जिसके सुनाने पढने से सब संकट मिट जाये ॥
मेधा ऋषि बोले तभी, सुन राजन धर ध्यान,
भगवती देवी की कथा करे सबका कल्याण ॥
देव असुर भयो युद्ध अपार,
महिषासुर दैतन सरदारा योद्धा बली इन्दर
से भिरयो
लड़यो वर्ष शतरनते न फिरयो ॥
देव सेना तब भागी भाई,
महिषासुर इन्द्रासन पाई ॥
देव ब्रह्मा सब करें पुकारा,
असुर राज लियो छीन हमारा ॥
ब्रह्मा देवन संग पधारे,
आये विष्णु शंकर द्वारे ॥
कही कथा भर नैनन नीरा,
प्रभु देत असुर बहु पीरा ॥
सुन शंकर-विष्णु अकुलाये,
भवे तनी मन क्रोध बढ़ाये ॥
नैन भये त्रयदेव के लाला,
मुख ते निकल्यो तेज विशाला ॥
तब त्रयदेव के अंगो से निकला तेज अपार,
जिसकी ज्वाला से हुआ उज्ज्वल सब संसार ॥
सभी तेज इक जा मिल जाई,
अतुल तेज बल परयो लखाई ॥
ताहि तेज सो प्रगटी नारी,
देख देव सब भयो सुखारी ॥
शिव के तेज ने मुख उपजायो,
धर्म तेज ने केश बनायो ॥
विष्णु तेज से बनी भुजाये,
कुच मे चंदा तेज समाये ॥
नासिका तेज कुबेर बनाई,
अग्नि तेज त्रयनेत्र समाई ॥
ब्रह्मा तेज प्रकाश फैलाये,
रवि तेज ने हाथ बनाये ॥
तेज प्रजापति दांत उपजाए,
श्रवण तेज वायु से पाए ॥
सब देवन जब तेज मिलाया,
शिवा ने दुर्गा नाम धराया ॥
अट्टाहास कर गरजी जब दुर्गा आध भवानी,
अट्टाहास कर गरजी जब दुर्गा आध भवानी,
सब देवन ने शक्ति यह माता करके मानी ॥
शम्भु ने त्रिशूल, चक्र विष्णु ने दीना,
शम्भु ने त्रिशूल, चक्र विष्णु ने दीना,
अग्नि से शक्ति और शंख वर्ण से लीना ॥
धनुष बाण, तर्कश, वायु ने भेंट
चढाया,
सागर ने रत्नों का माँ को हार पहनाया ॥
सूर्य ने सब रोम किये रोशन माता के,
बज्र दिया इन्दर ने हाथ में जगदाता के ॥
एरावत की घंटी इन्दर ने दे डारी,
सिंह हिमालय ने दीना करने को सवारी ॥
काल ने अपना खड्ग दिया फिर सीस निवाई,
ब्रह्मा जी ने दिया कमण्डल भेंट चढाई ॥
विश्वकर्मा ने अदभूत एक परसा दे दीना,
शेषनाग ने छत्र माता को भेंटा कीना ॥
वस्त्र आभुषण नाना भांति देवन पहराये,
रत्न जटित मैया के सिर पर मुकुट सुहाए ॥
आदि भवानी ने सुनी देवन विनय पुकार,
आदि भवानी ने सुनी देवन विनय पुकार,
असुरों के संघार को हुई सिंह असवार ॥
रण चंडी ज्वाला बनी हाथ लिए हथियार,
सब देवो ने मिल तभी कीनी जय जय कार ॥
चली सिंह चढ़ दुर्गा भवानी, देव सैन को साथ लिये,
सब हथियार सजाये रण के अति भयानक रूप
किये ॥
महिषासुर राक्षस ने जब यह समाचार उनका
पाया,
लेकर असुरों की सेना जल्दी रण-भूमि मे
आया ॥
दोनों दल जब हुए सामने रण-भूमि मे
लड़ने लगे,
क्रोधित हो रण चंडी चली लाशो पर लाशे
पड़ने लगे ॥
भगवती का यह रूप देख असुरो के दिल थे कांप रहे,
भगवती का यह रूप देख असुरो के दिल थे कांप रहे,
लड़ने से घबराते थे, कुछ भाग गए कुछ हांफ रहे ॥
असुर के साथ करोड़ों हाथी घोड़े सेना
में आये,
देख के दल महिषासुर का व्याकुल हो
देवता घबराए ॥
रण चंडी ने दशो दिशाओं में वोह हाथ
फैलाये थे,
युद्ध भूमि मे लाखो दैत्यों के सिर काट
गिराए थे ॥
देवी सेना भाग उठी रह गई अकेली दुर्गा
ही,
महिषासुर सेना के सहित ललकारता आगे बढ़ा ॥
तभी उस दुर्गा अष्टभुजी माँ ने रण भूमि
में लम्बे सांस लिए,
श्वास श्वास में अम्बा जी ने लाखों ही
गण प्रगट किये ॥
बलशाली गण बढ़े वो आगे सजे सभी
हथियारों से,
गूंज उठा आकाश तभी माता के जै जैकारों
से ॥
पृथ्वी पर असुरों के लहू की लाल नदी वह
बहती थी,
बच नहीं सकता दैत्य कोई ललकार के देवी कहती
थी ॥
लकड़ी के ढेरों को अग्नि जैसे भस्म
बनाती है,
वैसे ही शक्ति की शक्ति दैत्यों को
मिटाती जाती है ॥
सिंह चढ़ी दुर्गा ने पल में दैत्यों का
संहार किया,
पुष्प देवों ने बरसाए माता का जै जैकार
किया ॥
'भक्त' जो श्रद्धा
प्रेम से दुर्गा पाठ को पढ़ता जायेगा,
दुखो से वह रहेगा बचा मन वांछित फल
पायेगा ॥
दोहा : हुआ समाप्त दूसरा दुर्गा पाठ अध्याय,
दोहा : हुआ समाप्त दूसरा दुर्गा पाठ अध्याय,
'भक्त' भवानी की दया,
सुख सम्पति घर आये ॥
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