द्वादश
अध्याय में है माँ का आशीर्वाद
सुनो
राजा तुम मन लगा देवी देव संवाद ॥
महालक्ष्मी
बोली तभी करे जो मेरा ध्यान
निशदिन
मेरे नामों का जो करता है गान ॥
बाधायें
उसकी सभी करती हूं मैं दूर
उसके
ग्रह सुख सम्पति भरती हूं भरपूर ॥
अष्टमी
नवमी चतुर्दर्शी करके एकाग्रचित
मन
कर्म वाणी से करे पाठ जो मेरा नित ॥
उसके
पाप व् पापों से उत्पन्न हुए क्लेश
दुःख
दरिद्रता सभी मैं करती दूर हमेश ॥
प्रियजनों
से होगा ना उसका कभी वियोग
उसके
हर एक काम में दूँगी मैं सहयोग ॥
शत्रु, डाकू, राजा और शस्त्र से बच जाये
जल
में वह डूबे नहीं न ही अग्नि जलाए ॥
भक्ति
पूर्वक पाठ जो पढ़े या सुने सुनाये
महामारी
बीमारी का कष्ट ना कोई आये ॥
जिस
घर में होता रहे मेरे पाठ का जाप
उस घर
की रक्षा करूं मिटे सभी संताप ॥
ज्ञान
चाहे अज्ञान से जपे जो मेरा नाम
हो
प्रसन्न उस जीव के करूं मैं पूरे काम ॥
नवरात्रों
में जो पढ़े पाठ मेरा मन लाये
बिना
यत्न किये सभी मनवांछित फल पाए ॥
पुत्र
पौत्र धन धाम से करूं उसे सम्पन्न
सरल
भाषा का पाठ जो पढ़े लगा कर मन ॥
बुरे
स्वप्न ग्रह दशा से दूँगी उसे बचा
पढ़ेगा
दुर्गा पाठ जो श्रद्धा प्रेम बढ़ा ॥
भूत
प्रेत पिशाचिनी उसके निकट ना आये
अपने दृढ़
विश्वास से पाठ जो मेरा गाए ॥
निर्जन
वन सिंह व्याघ से जान बचाऊं आन
राज्य
आज्ञा से भी ना होने दूं नुक्सान ॥
भंवर
से भी बाहर करूं लम्बी भुजा पसार
'भक्त' जो दुर्गा पाठ पढ़ करेगा प्रेम पुकार ॥
संसारी
विपत्तियां देती हूं मैं टाल
जिसको
दुर्गा पाठ का रहता सदा ख्याल ॥
मैं
ही रिद्धि -सिद्धि हूं महाकाली विकराल
मैं
ही भगवती चंडिका शक्ति शिवा विशाल ॥
भैरो
हनुमत मुख्य गण हैं मेरे बलवान
दुर्गा
पाठी पे सदा करते कृपा महान ॥
इतना
कह कर देवी तो हो गई अंतरध्यान
सभी
देवता प्रेम से करने लगे गुणगान ॥
पूजन
करे भवानी का मुहं मांगा फल पाए
'भक्त' जो दुर्गा पाठ को नित श्रद्धा से गाए ॥
वरदाती
का हर समय खुला रहे भंडार
इच्छित
फल पाए 'भक्त' जो भी करे पुकार
॥
इक्कीस
दिन इस पाठ को कर ले नियम बनाये
हो
विश्वास अटल तो वाकया सिद्ध हो जाये ॥
पन्द्रह
दिन इस पाठ में लग जाये जो ध्यान
आने
वाली बात को आप ही जाए जान ॥
नौ
दिन श्रद्धा से करे नव दुर्गा का पाठ
नवनिधि
सुख सम्पति रहे वो शाही ठाठ ॥
सात
दिनों के पाठ से बलबुद्धि बढ़ जाये
तीन
दिनों का पाठ ही सारे पाप मिटाए ॥
मंगल के
दिन माता के मन्दिर करे ध्यान
'भक्त' जैसी मन भावना वैसा हो कल्याण ॥
शुद्धि
और सच्चाई हो मन में कपट ना आये
तज कर
सभी अभिमान न किसी का मन कलपाये ॥
सब का
कल्याण जो मांगेगा दिन रैन
काल
कर्म को परख कर करे कष्ट को सहन ॥
रखे
दर्शन के लिए निस दिन प्यासे नैन
भाग्यशाली
इस पाठ से पाए सच्चा चैन ॥
द्वादश
यह अध्याय है मुक्ति का दातार
'भक्त' जीव हो निडर उतरे भव से पार ॥
॥जय
माँ जगदम्बे॥
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