शुक्रवार, 10 मई 2013

दुर्गा सप्तशती : बारहवां अध्याय


द्वादश अध्याय में है माँ का आशीर्वाद
सुनो राजा तुम मन लगा देवी देव संवाद ॥

महालक्ष्मी बोली तभी करे जो मेरा ध्यान
निशदिन मेरे नामों का जो करता है गान ॥

बाधायें उसकी सभी करती हूं मैं दूर
उसके ग्रह सुख सम्पति भरती हूं भरपूर ॥

अष्टमी नवमी चतुर्दर्शी करके एकाग्रचित
मन कर्म वाणी से करे पाठ जो मेरा नित ॥

उसके पाप व् पापों से उत्पन्न हुए क्लेश
दुःख दरिद्रता सभी मैं करती दूर हमेश ॥

प्रियजनों से होगा ना उसका कभी वियोग
उसके हर एक काम में दूँगी मैं सहयोग ॥

शत्रु, डाकू, राजा और शस्त्र से बच जाये
जल में वह डूबे नहीं न ही अग्नि जलाए ॥

भक्ति पूर्वक पाठ जो पढ़े या सुने सुनाये
महामारी बीमारी का कष्ट ना कोई आये ॥

जिस घर में होता रहे मेरे पाठ का जाप
उस घर की रक्षा करूं मिटे सभी संताप ॥

ज्ञान चाहे अज्ञान से जपे जो मेरा नाम
हो प्रसन्न उस जीव के करूं मैं पूरे काम ॥

नवरात्रों में जो पढ़े पाठ मेरा मन लाये
बिना यत्न किये सभी मनवांछित फल पाए ॥

पुत्र पौत्र धन धाम से करूं उसे सम्पन्न
सरल भाषा का पाठ जो पढ़े लगा कर मन ॥

बुरे स्वप्न ग्रह दशा से दूँगी उसे बचा
पढ़ेगा दुर्गा पाठ जो श्रद्धा प्रेम बढ़ा ॥

भूत प्रेत पिशाचिनी उसके निकट ना आये
अपने दृढ़ विश्वास से पाठ जो मेरा गाए ॥

निर्जन वन सिंह व्याघ से जान बचाऊं आन
राज्य आज्ञा से भी ना होने दूं नुक्सान ॥

भंवर से भी बाहर करूं लम्बी भुजा पसार
'भक्त' जो दुर्गा पाठ पढ़ करेगा प्रेम पुकार ॥

संसारी विपत्तियां देती हूं मैं टाल
जिसको दुर्गा पाठ का रहता सदा ख्याल ॥

मैं ही रिद्धि -सिद्धि हूं महाकाली विकराल
मैं ही भगवती चंडिका शक्ति शिवा विशाल ॥

भैरो हनुमत मुख्य गण हैं मेरे बलवान
दुर्गा पाठी पे सदा करते कृपा महान ॥

इतना कह कर देवी तो हो गई अंतरध्यान
सभी देवता प्रेम से करने लगे गुणगान ॥

पूजन करे भवानी का मुहं मांगा फल पाए
'भक्त' जो दुर्गा पाठ को नित श्रद्धा से गाए ॥

वरदाती का हर समय खुला रहे भंडार
इच्छित फल पाए 'भक्त' जो भी करे पुकार ॥

इक्कीस दिन इस पाठ को कर ले नियम बनाये
हो विश्वास अटल तो वाकया सिद्ध हो जाये ॥

पन्द्रह दिन इस पाठ में लग जाये जो ध्यान
आने वाली बात को आप ही जाए जान ॥

नौ दिन श्रद्धा से करे नव दुर्गा का पाठ
नवनिधि सुख सम्पति रहे वो शाही ठाठ ॥

सात दिनों के पाठ से बलबुद्धि बढ़ जाये
तीन दिनों का पाठ ही सारे पाप मिटाए ॥

मंगल के दिन माता के मन्दिर करे ध्यान
'भक्त' जैसी मन भावना वैसा हो कल्याण ॥

शुद्धि और सच्चाई हो मन में कपट ना आये
तज कर सभी अभिमान न किसी का मन कलपाये ॥

सब का कल्याण जो मांगेगा दिन रैन
काल कर्म को परख कर करे कष्ट को सहन ॥

रखे दर्शन के लिए निस दिन प्यासे नैन
भाग्यशाली इस पाठ से पाए सच्चा चैन ॥

द्वादश यह अध्याय है मुक्ति का दातार
'भक्त' जीव हो निडर उतरे भव से पार ॥

॥जय माँ जगदम्बे॥

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