शुक्रवार, 3 मई 2013

दुर्गा सप्तशती : तीसरा अध्याय




चक्षुर ने निज सेना का सुना जभी संहार
क्रोधित होकर लड़ने को आप हुआ तैयार

ऋषि मेधा ने राजा से फिर कहा
सुनो तृतीय अध्याय की अब कथा महा

योद्धा चक्षुर था अभिमान में
गरजता हुआ आया मैदान में

वह सेनापति असुरों का वीर था
चलाता महाशक्ति पर तीर था

मगर दुर्गा ने तीर काटे सभी
कई तीर देवी चलाये तभी जभी

तीर तीरों से टकराते थे
तो दिल शूरवीरों के घबराते थे

तभी शक्ति ने अपनी शक्ति चला
वह रथ असुर का टुकड़े - टुकड़े किया

असुर देख बल माँ का घबरा गया
खड्ग हाथ ले लड़ने को आ गया

किया वार गर्दन पे तब शेर की
बड़े वेग से खड्ग मारी तभी

भुजा शक्ति पर मारा तलवार को
वह तलवार टुकड़े-टुकड़े गई लाख हो

असुर ने चलाई जो त्रिशूल भी
लगी माता के तन को वह फूल सी

लगा कांपने देख देवी का बल
मगर क्रोध से चैन पाया न पल

असुर हाथी पर माता थी शेर पर
लाइ मौत थी दैत्य को घेर कर

उछल सिंह हाथी पे ही जा चढ़ा
वह माता का सिंह दैत्य से जा लड़ा

जबी लड़ते लड़ते गिरे पृथ्वी पर
बढ़ी भद्रकाली तभी क्रोध कर

असुर दल का सेनापति मार कर
चली काली के रूप को धार कर

गर्जती खड्ग को चलाती हुई
वह दुष्टों के दल को मिटाती हुई

पवन रूप हलचल मचाती हुई
असुर दल जमीं पर सुलाती हुई

लहू की वह नदियां बहाती हुई
नए रूप अपने दिखाती हुई

महाकाली ने असुरों की जब सेना दी मार
महिषासुर आया तभी रूप भैंसे का धार


गरज उसकी सुनकर लगे भागने गण, कई भागतों को असुर ने संहारा
खुरो से दबाकर कई पीस डाले, लपेट अपनी पूंछ से कईयो को मारा

जमीं आसमा को गर्ज से हिलाया
पहाड़ो को सींगो से उसने उखाड़ा

श्वांसो से बेहोश लाखो ही कीने
लगे करने देवी के गण हाहाकारा

विकल अपनी सेना को दुर्गा ने देखा, चढ़ी सिंह पर मार किलकार आई
लिए शंख चक्र गदा पद्म हाथों वह त्रिशूल परसा ले तलवार आई

किया रूप शक्ति ने चंडी का धारण
वह दैत्यों का करने थी संहार आई

लिया बांध भैंसे को निज पाश में
झट असुर ने वो भैंसे की देह पलटाई बना शेर सन्मुख लगा गरजने

वो तो चंडी ने हाथों में फरसा उठाया
लगी काटने दैत्य के सिर को दुर्गा तो तज सिंह का रूप नर बन के आया

जो नर रूप की माँ ने गर्दन उड़ाई, तो कर गज रूप धारण बिलबिलाया
लगा खींचने शेर को सूंड से जब, तब दुर्गा ने सूंड को काट गिराया

कपट कर समाप्त दिया माया ने
रूप बदला लगा भैंसा बन के उपद्रव मचाने

तभी क्रोधित होकर जगत मात चंडी, लगी नेत्रों से अग्नि बरसाने
उछल भैंसे की पीठ पर जा चढ़ी वह लगी पांवो से उसकी देह को दबाने

दिया काट सर भैंसे का खड्ग से जब, तो आधा ही तन असुर का बाहर आया
तब त्रिशूल जगदम्बे ने हाथ लेकर महा दुष्ट का सीस धड से उड़ाया

चली क्रोध से मैया ललकारती तब किया पल मे दैत्यों का सारा सफाया
             पुष्प देवों ने मिल कर गिराए, अप्सराओं व गन्धर्वो ने राग गाया

तृतीय अध्याय में है महिषासुर संहार
'भक्त' पढ़े जो प्रेम से मिटते कष्ट अपार


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